इंसान जिसने भविष्य देख लिया था
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कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना अबुल क़लाम आज़ाद ने अप्रैल 1946 को लाहौर बेस्ड मैगज़ीन चट्टान के लिये यह इंटरव्यू शोरीश काश्मीरी को दिया था । इस इंटरव्यू में आज़ाद ने पाकिस्तान और भारत के मुसलामानों के बारे में कुछ सनसनीखेज अनुमान लगाये जैसे पाकिस्तान का बंटवारा और भारत पाकिस्तान का युद्ध होना ।
इस इंटरव्यू को काश्मीरी की अपनी किताब अबुल कलाम आज़ाद के सिवाय कंही भी नही छापा गया ।
इस इंटरव्यू के कुछ अंश..
पाकिस्तान एक राजनैतिक दृष्टिकोण है , बिना यह सोचे समझे की क्या यह भारतीय मुसलमानों की समस्याओं का सही समाधान है , इसको इस्लाम के नाम पर मांगा जा रहा है । सवाल यह है कि इस्लाम कब और कंहा पर देशों को धार्मिक मान्यातो के आधार पर बंटवारे को जायज़ बताता है ? क़ुरान में इसकी मंजूरी मिलती है क्या ये हमारे पैग़म्बर की परम्परों से मेल खाता है ?
इस्लाम के विद्वानों में आज तक किस ने इस आधार पर अल्लाह के प्रभुत्व का विभाजन किया है अगर हम सिद्धांत के रूप में इस विभाजन को स्वीकार कर लेते हैं तो हमारे इस्लाम के यूनिवर्सल सिस्टम होने के तर्क का क्या होगा हम भारत सहित अन्य गैर मुस्लिम देशों में बढ़ती हुई मुस्लिम आबादी का क्या ज़वाब दे पायेंगे
पाकिस्तान की मांग ने मुसलमानों का किसी भी तरह भला नही किया है ,पाकिस्तान इस्लाम की क्या ख़िदमत कर सकता है ये एक विवादास्पद सवाल है और ये निर्भर करता है कि पाकिस्तान को किस प्रकार की लीडरशिप मिलती है किंतु पश्चिमी प्रभाव में स्थिति और खराब हो गयी है और जिस तरह से मुस्लिम लीग का नेतृत्व बर्ताव कर रहा है ये तय है कि इस्लाम पाकिस्तान में और मुसलमान भारत में एक दुर्लभ वस्तु बन जायेगा ।
अगर पाक़िस्तान मुसलमानों के लिये सही होता तो मैं इसका समर्थन करता पर मैं स्पष्ट रूप से इस मांग के खतरों को देख पा रहा हूँ मैं नही कहता की लोग मेरी ही बात मानें पर मैं अपने अंतर्मन को नही झुठला सकता आज मुसलमान काले को सफ़ेद कह देंगे पर पाक़िस्तान की मांग नही छोड़ेंगे ।
पर मैं चेतावनी के रूप में कहूंगा विभाजन के दुष्परिणाम अकेले भारत को प्रभावित नही करेंगे पर समान रूप से पाकिस्तान का भी सबब बन जायेंगे ये विभाजन आबादी के धर्म के आधार पर होगा न की किसी प्रकृतिक बाधा जैसे पहाड़ , रेगिस्तान ,नदी।
एक नई लकीर खींची जायेगी ये कहना मुश्किल है ये कितनी टिकाऊ होगी । हमे ये नही भूलना चाहिये जो चीज़ नफ़रत से पैदा होती है तो बस तब तक जीवित रह सकती है जब तक नफ़रत जिंदा है ये नफरत भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों को डूबा देंगे इस परिस्थिति में भारत और पाकिस्तान का मित्रवत रह पाना संभव नही होगा ।
विभाजन की राजनीति ही दोनों देशों के बीच दंश का काम करेगी पाकिस्तान के लिये भारत के सभी मुस्लिमों को ले लेना संभव नही है ये उसकी भौगोलिक क्षमाताओं से बाहर है और पाकिस्तान में भी ख़ासकर पशिचमी पाकिस्तान में हिंदुओं का रह पाना संभव नही होगा उन्हें बाहर फेंक दिया जायेगा या वो खुद छोड़ देंगे इसका उल्टा प्रभाव भारत में होगा और भारत के मुसलानों के पास तीन ही विकल्प रह जायेंगे
वे लूट और ज्यादतियों के शिकार बन कर पाकिस्तान को पलायन कर जायें पर कितने मुस्लिम वंहा आशियाना पा सकते हैं
बहुत से मुस्लिम हत्या और अन्य ज़्यादतियों को झेलेंगे जब तक की विभाजन की कड़वी यादें भुला नही दी जाती और विभाजन देखने वाली पीढ़ी का समय खत्म नही हो जाता
बहुत से मुसलमान ग़रीबी , राजनितिक वनवास और लूटपाट की वजह से इस्लाम छोड़ देंगे
बड़े मुसलमान जो मुस्लिम लीग के समर्थक हैं पाकिस्तान चले जायेंगे , अमीर मुसलमान पकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर कब्जा कर लेंगे पर भारत में तीस मिलियन मुस्लिम पीछे छूट जायेंगे उनका क्या होगा , उनकी स्थिति तब और खराब हो जायेगी जब पाकिस्तान से हिंदुओ और सिखों के पलायन की खबरें आयेंगी ।
एक और महत्वपूर्ण बात जो मुहम्मद अली जिन्ना के ध्यान में नही है वो है बंगाल , उन्हें पता नही है बंगाल ने हमेशा ही बाहर के नेतृत्व का विरोध किया है और देर सवेर इसे ख़ारिज किया है विश्व युद्ध -2 के समय फजलुल हक़ ने जिन्ना की ख़िलाफ़त की थी मिस्टर सुहरावर्दी जिन्ना को बहुत सम्मान से नही देखते केवल मुस्लिम लीग ही क्यों कांग्रेस को देख लें सुभाष चन्द्र बोस का विद्रोह सबको पता है गांधी जी सुभाष चंद्र बोस की अध्यक्षता से खुश नही थे और राजकोट में आमरण अनशन पर बैठ गये थे बोस गांधी जी के आगे ऊपर उठे और कांग्रेस से किनारा कर लिया ।बंगाल की आबोहवा ही इस तरह की है कि वो बाहर का नेतृत्व पचा नही पाता और उसके खिलाफ विद्रोह कर देता है ।
ईस्ट पाकिस्तान का भरोसा जब तक जिन्ना और लियाक़त अली हैं तब तक नही टूटेगा पर उनके बाद छोटी सी घटना भी असन्तोष और अलगाव की भावना पैदा कर देगी ।
मुझे लगता है पूर्वी पाकिस्तान का पश्चिमी पाकिस्तान के साथ लम्बी अवधि तक रहना संभव नही है , उनके बीच कुछ भी समान नही है सिवाय इसके की वे खुद को मुसलमान कहते हैं पर सत्य ये है कि सिर्फ मुसलमान होना एक भौगोलिक राष्ट्र होने की जरुरी शर्त को पूरा नही करता ।
अरब जगत हमारे सामने हैं वे सब एक ही धर्म को मानते हैं यहाँ तक भी उनका तो संस्कृति और भाषा भी एक जैसी है फिर भी उनके बीच कोई भी राजनीतिक एकरूपता नही है ,अधिकतर वे एक दूसरे से आपसी आरोप ,प्रत्यारोप और दुश्मनी में लगे रहते हैं।
यंहा ईस्ट और वेस्ट पकिस्तान की तो भाषा रहन सहन,खान ,पान सब अलग हैं जैसे ही पाकिस्तान बना लेने की आग ठंडी होगी ये विरोधाभास उभरने लगेंगे और बाहरी शक्तियों के प्रभाव में आखिर में ये दोनों भाग अलग हो जायेंगे । पूर्वी पाकिस्तान के अलग होने के बाद जब भी ये होता है पश्चिमी पाकिस्तान क्षेत्रीय विरोधाभासों और विवादों की लड़ाई का मैदान बन जायेगा
पंजाब सिंध बलूचिस्तान और फ्रंटियर के राष्ट्रीय पहचान के दावे विदेशी शक्तियों के हस्तक्षेप के दरवाजे खोल देंगे ,बहुत समय नही लगेगा जब ये शक्तियां पाकिस्तानी को बाल्कन और अरब देशों की तर्ज पर तोड़ देंगी ।
तब शायद हम अपने आप से पूछेंगे की हमने क्या पाया और क्या खोया ?
मुझे लगता है अपनी पैदाइश के समय से ही पाकिस्तान को कुछ गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा ।
असक्षम राजनैतिक नेतृत्व सैन्य तानाशाही का मार्ग प्रशस्त करेगा जैसा की अन्य बहुत से अरब देशों में हुआ है
पाकिस्तान पर भारी विदेशी कर्ज का बोझ हो जायेगा ।
पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों का अभाव और सशस्त्र संघर्ष की संभावना
आंतरिक अशांति और क्षेत्रीय संघर्ष
नये बने अमीरों और उद्योगपतियों द्वारा राष्ट्रीय धन की लूट
शोषण के परिणाम स्वरूप वर्ग संघर्ष की आशंका
धर्म से असन्तोष और अलगाव की भावना और पाकिस्तान के सिद्धांत का पतन
अंतराष्ट्रीय शक्तियों द्वारा पाकिस्तान को नियंत्रित करने के लिये षड्यंत्र।
मैं ये दिल से कामना करता हूँ की मुस्लिम अपने देशवासियों के साथ मिल कर चलना सीखे और इतिहास को यह कहने का मौका ना दें जब भारतीय अपनी आज़ादी के लिये लड़ रहे थे मुसलमान दर्शकों की तरह बस देख रहे थे
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