हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ का सच

आज़ादी के बाद से ही नेहरू काल में भारत ने सोसलिस्ट इकॉनमी का मॉडल फॉलो किया और बाज़ार ,लाइसेंस राज लाल फीता शाही के नीचे दबा रहा , इस समय 1970 के दशक में एक भारतीय अर्थशास्त्री डॉक्टर राज कृष्णन ने एक कहा था लगता है किसी हिन्दू धर्मशास्त्र में लिखा है कि 3.5 % से ज्यादा ग्रोथ रेट नही होगी ओर 3.5 जैसे कोई दैवीय अंक है ।

भारत की अर्थव्यवस्था को डिफाइन करने के लिये और अपने नकारेपन को छुपाने के लिये इस टर्म ” हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ ” का बहुत इस्तेमाल हुआ ।


डॉक्टर राज शिकागो से अर्थशास्त्र पढ़े हुये थे ।

असल मे इस थिओरी के बीज बहुत पहले पड़ गये थे
भारत को समझने के लिये भारतीय अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र में उन विद्यानों को पढ़ाया गया जिन्होंने कभी भारत को देखा नही किसी भारतीय ग्रँथ को पढ़ा नही ।

पहला उदाहरण कार्ल मार्क्स 25 जून 1853 में न्यूयार्क हेराल्ड ट्रिब्यून में उन्होंने भारत के लिये लिखा की भारतीय गांव खुद में एक इकनॉमिक यूनिट हैं ये न तो कुछ आयात करते हैं न ही कुछ निर्यात , ये खुद ही उत्पादन करते हैं और खुद ही खपत ,आर्थिंक रूप से कोई भेदभाव नही है इसे कार्ल मार्क्स ने प्रिमिटिव सोसलिज़्म कहा , पर आगे उसने कहा कि ये समाज प्रगति नही कर सकता क्योंकि ये बंदरों ओर गायों की पूजा करता है और एक क्रांति लाने के लिये इस सँस्कृति को टूटना होगा जो काम ब्रटिश कर रहे हैं ये देखने मे कष्टकारी है पर लाभपूर्ण भी है ।

इसके बाद मैक्स वेबर जिन्होंने 1925 में अपनी किताब में बताया कि दो सभ्यतायें अर्थव्यवस्था में कभी प्रगति नही कर सकती , भारत और चाइना साथ ही उसने ये भी लिखा क्योंकि हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानते हैं जो की बाजारवाद के सिद्धांतों के खिलाफ है इसलिये ये आर्थिक प्रगति में पीछे रह जायेंगे , ओर आर्थिक रूप से आगे बढ़ने के लिये इन सभ्यताओं के इन मूल भूत सिद्धांतो को खत्म करना होगा ।
भारत मे इन्ही थिंकर्स को कॉलेजों में विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाने लगा ।

इन सिद्धांतों की पोल खुलना शुरू हुई सत्तर के दशक में जब साउथ कोरिया और जापान की इकॉनमी ने रफ्तार पकड़ी , क्योंकि एक बौद्ध देश होने के नाते तो जापान को इकॉनमी में पीछे रहना चाहिये था 😉

इसको समझने के लिये पॉल बेरोक एक बेल्जियम अर्थशास्त्री ने सन 1750 से 1918 तक के दुनिया भर के आर्थिक सर्वेक्षणों का अध्ययन किया और उसके नतीजे में ये डेटा दिया
सन 1750 में वर्ड जीडीपी में किसका कितना हिस्सा था

चाइना – 32%
भारत – 25 %
यूके – 1.8 %

इस स्टडी ने यूरोपीय दुनिया मे खलबली मजा दी और दुनिया के महानतम अर्थशास्त्री एंगस मेडिसन के नेतृत्व में ऑर्गनाइजेशन ऑफ यूरोपियन इकनॉमिक कॉर्पोरेशन (OEEC) ने एक व्यापक स्टडी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर शुरू की जिसमे पिछले दो हज़ार साल की अर्थव्यवस्था में किसका कितना योगदान रहा इसको जानने की कोसिस की गई ,इस रिपोर्ट को 2001 में जारी कर दिया गया (चित्र में ) जिसमें बताया गया कैसे सोल्हनवीं शताब्दी तक एशिया इकनॉमिक जॉइंट था और भारत और चाइना वैश्विक अर्थव्यवस्था को लीड कर रहे थे ।

GDP in millions of 1990 International Dollars

पर आज भी हमारे संस्थानों में उन्ही लोगों को पढ़ाया जा रहा जिन्होंने भारत कभी घुमा नही भारत को जाना नही ओर निणर्य दे दिया कि बिना यंहा की सँस्कृति को नष्ट किये आर्थिक प्रगति सम्भव नही है ।

Photo courtesy – Google

Leave a comment