इन्हें देख कर अक्सर लोग अफ़्रीकी,नीग्रो जैसे कमेंट कर देते हैं

बचपन में कई बार माँ से डांट पड़ती थी ये क्या हब्शियों की तरह खा रहे हो , जानते हैं ये हब्सी कौन हैं !!!

हब्सी या शिद्दी कम्युनिटी के लोग आज भारत में मुख्य रूप से गुजरात के जूनागढ़ के आस पास , कर्नाटक ,केरला और आंध्रा के कुछ इलाकों में बसें हैं जिनकी आबादी करीब पचास से साठ हजार के बीच होगी ।

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ये राजनीति है यहाँ सब चलता है

ये राजनीति है यहाँ सब चलता है

नेहरू गांधी को हमेशा कोसने वाले अम्बेडकर नेहरू मंत्रीमंडल में रहे और निकलने के बाद भी कोसते ही रहे

इंदिरा को प्रधानमंत्री बनवाने वाले कामराज को पार्टी से निकाल दिया बाद में भारतरत्न भी खुद ही दिया

इंदिरा गांधी को जेल भिजवाने की कसम खाने वाले चरण सिंह ने मोरार जी की सरकार गिरा के इंदिरा के समर्थन से सरकार बनाई

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कुछ यूँ उगा सबसे बड़े लोकतंत्र का सूरज

सदियों इंतज़ार के बाद दिन वो भी आया ,जब भारत के लिए सर्वस्व अर्पण करने वालों की विजय हुई,गुलामी की जंजीरे तोड़ हमारा देश स्वंतत्र हुआ, आज़ादी की सुबह हुई,गुलामी का तम छंटा!

26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान तैयार हुआ,लेकिन असल परीक्षा थी लोकतंत्र की बहाली , आगाज हुआ 1952 में प्रथम आम चुनावों से ।

जवाहरलाल नेहरू चाहते थे की 1951 के बसंत तक चुनाव करवाये जाएँ,इसे जल्दबाज़ी कहिये या उतावलापन आखिर जो भी कहिये ये उत्साह था लोकतंत्र के उत्सव के जल्द से जल्द आयोजन का।

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सरकार चाइना से युद्ध करने पे आमादा थी

साठ के दसक में नेहरू के आंकलन के विपरीत चीन सिंगकियांग तिब्बत रोड के पश्चिम में सत्तर मील आगे बढ़ आया और चार हज़ार वर्ग किलो मीटर का क्षेत्र अपने कब्जे में ले लिया ।

नेहरू और डिफेंस मिनिस्टर कर्षणा मेनन को जवाब देना मुश्किल हो रहा था ।

इस दौरान नेहरू ने तब के सेना प्रमुख पी एन थापर को इन पोस्ट को छुड़ाने का आदेश दे दिया

आर्मी चीफ ने नेहरू को आगाह किया ये बर्र के छत्ते में हाथ डालने जैसा काम होगा ।

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लड़की जो मलाला नही बन पायी

बात नब्बे के दशक की है अमेरिका में उस समय बुश सीनियर प्रेसिडेंट थे और ईराक में सद्दाम हुसैन।

सद्दाम ने कुबैत पर क्ब्जा कर लिया था जो उस समय सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश हुआ करता था और जंहा अमेरिकी तेल कंपनियो ने भारी निवेश किया हुआ था और वंहा अमेरिका की पिट्ठू सरकार भी थी ।

बुश सीनियर मानवता को बचाने के लिये ईराक पे हमला करना चाह रहे थे पर सीनेट या अमेरिकी जनता का समर्थन नही जुटा पा रहे थे ।

इसी बीच पन्द्रह साल की एक लड़की नियाराह ने 10 ऑक्टोबर 1990 को वर्ड ह्यूमन राइट्स काकस के सामने एक टेस्टोमोनि दी ।

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